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हिंडनबर्ग रिपोर्ट 2.0 से जनता के बीच कौन बना विलेन- BJP या कांग्रेस?

 
हिंडनबर्ग रिपोर्ट 2.0 से जनता के बीच कौन बना विलेन- BJP या कांग्रेस?

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर जिस तरह कांग्रेस आक्रामक हो जाती है, और जिस तरह भारतीय जनता पार्टी अडानी ग्रुप के बचाव में आ जाती है वो हमेशा शक के घेरे में रहा है. पर इस बार भारतीय जनता ने जिस तरह इस रिपोर्ट पर रिस्पांस दिया है वो बिल्कुल अविश्वसनीय लगता है. ऐसा क्यों और कैसे हुआ आइये देखते हैं.

जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग ने अडानी ग्रुप पर शेयरों में हेरफेर और अकाउंटिंग फ्रॉड के गंभीर आरोप लगाए थे. इस रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में करीब 150 अरब डॉलर की गिरावट आई थी. आमतौर पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट का यही काम रहा है. पूरी दुनिया में शेयरों को गिराकर कमाई करने वाले हिंडनबर्ग का भरोसा शायद अब भारतीय निवेशकों में नहीं रहा.

यही कारण है कि सोमवार को भारतीय शेयर बाजार में वैसी हलचल नहीं देखी गई जैसा पहली रिपोर्ट आने पर हुई थी. पर इसके साथ यह भी है कि ऐसी रिपोर्ट आने से SEBI की भूमिका पर सवाल उठने तय् हैं. चूंकि SEB भारतीय शेयर बाजार की नियामक संस्था है, उस पर ऐसे आरोप लगने से उसकी निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं.

SEBI पर यह जिम्मेदारी होती है कि वो बाजार में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखे, लेकिन हिंडनबर्ग के आरोपों के बाद नया विवाद खड़ा हो गया है. इस मुद्दे ने राजनीतिक दुनिया में भी हलचल मचा दी है.

विपक्षी दलों ने SEBI की निष्पक्षता और सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. पर जिस तरह से हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस आक्रामक होती है और जिस तरह भारतीय जनता पार्टी हिंडनबर्ग रिपोर्ट को खारिज करने में लग जाती है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं दोनों के नफा और नुकसान जुड़े हुए हैं.

1-हिंडनबर्ग के आरोपों में दम तो है

हिंडनबर्ग का आरोप है कि माधवी बुच के सेबी चीफ बनने से 5 साल पहले 22 मार्च 2017 को उनके पति धवल बुच ने मॉरीशस फंड प्रशासक ट्राइडेंट ट्रस्ट को ईमेल भेजा था और बताया था कि उनका और उनकी पत्नी का ग्लोबल डायनामिक अपॉर्च्युनिटी में निवेश है. धवल ने आग्रह किया था कि इस फंड को उन्हें अकेले ऑपरेट करने दिया जाए.

यह साफ है कि सेबी में अहम रोल नियुक्ति से पहले धवल इससे अपनी पत्नी का नाम हटवाना चाहते थे. हिंडनबर्ग का कहना है कि अडानी ग्रुप पर जो खुलासे किए हैं, उसके हमारे पास सबूत हैं और 40 से ज्यादा स्वतंत्र मीडिया पड़ताल में भी यही बात सामने आई है.

लेकिन सेबी की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इन आरोपों की जांच की जिम्मेदारी भी सेबी चीफ के हाथों में थी. इसके उलट सेबी ने 27 जून 2024 को हमें ही कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. ये नोटिस हमें अडाणी के शेयरों में ली गई शॉर्ट पॉजिशन लेने के कारण दिया गया.

अडानी ग्रुप ने कहा है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में जिन लोगों के नामों का जिक्र किया गया है, उनके साथ हमारा कोई भी व्यावसायिक संबंध नहीं है. यह सिर्फ जानबूझकर बदनाम करने का प्रयास है.

अडानी ग्रुप की ओर से कहा गया है कि पहले लगाए गए इन सभी आरोपों की गहन जांच की जा चुकी है जो पूरी तरह से निराधार साबित हुए हैं. इन्हें सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में पहले ही खारिज कर दिया है.

बुच दंपति ने आरोपों को निराधार बताया है और इसे SEBI की विश्वसनीयता पर हमला और चेयरपर्सन के चरित्र हनन की कोशिश करने का आरोप लगाया है. सेबी चीफ का कहना है कि हिंडनबर्ग जिस विदेशी फंड में निवेश का आरोप लगा रही है, वो साल 2015 में किया गया था. उस समय हम लोग प्राइवेट सिटिजन थे. दंपति इस संबंध में सभी डॉकुमेंट्स सामने रखने को तैयार है.

यही नहीं इस तरह के सभी डॉक्यूमेंट्स सेबी में पहले ही जमा करवा दिया गया था. सेबी चीफ का कहना है कि हिंडनबर्ग ने भारत में कई तरह के नियमों का उल्लंघनों किया है, इसे लेकर उसे नोटिस भेजा गया है.

उसने जवाब देने के बजाय SEBI की विश्वसनीयता पर ही हमला करने की कोशिश की है. पर सेबी की विश्वसनियता बरकरार रहे इसके लिए जरूरी है कि सेबी की जांच इस तरह कराई जाए जिस पर आम लोगों के साथ देश के विपक्ष को भी कुछ कहने का मौका न मिले.

5-बुच को क्लीयर करना चाहिए कि अदानी ग्रुप मामले में जांच कर रही सेबी टीम का वो हिस्सा थीं या नहीं?

हिंडनबर्ग की ताज़ा रिपोर्ट के बाद जो सबसे बड़ा सवाल उठ रहा है वह यह है कि क्या माधबी बुच क्या अदानी ग्रुप मामले में जांच कर रही सेबी की टीम का हिस्सा थीं ? इस सवाल का जवाब सेबी और माधबी बुच दोनों को देना चाहिए. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बीबीसी लिखता है कि सेबी प्रमुख माधबी बुच ने सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित छह सदस्यों के पैनल को अडानी मामले की जांच का ब्रीफ़ किया था.

अगर ये सही है तो माधबी बुच बतौर सेबी प्रमुख जांच का हिस्सा थीं.आरोप लग रहे हैं कि अगर बुच को पता था कि जिस कंपनी पर सवाल उठ रहे हैं अतीत में उसमें उनका निवेश था तो उन्हें ख़ुद को जाँच से अलग रखना चाहिए था. हालाँकि इस सवाल का साफ़ जवाब अब तक सामने नहीं आया है. अगर सफाई आ जाती है तो यह सेबी और सरकार दोनों को राहत पहुंचाएगी.